Wednesday 30 September 2020

K C Shivshankar is no more

 K C Shivshankar is no more



आपण सगळ्यांनीच आपल्या बालवयात चांदोबा/Chandamama नक्कीच वाचला आहे. अनेक देखण्या अप्सरा, सामान्य माणसं, शेतकरी, व्यापारी, राजघराण्यातील पुरुष, लहान बालकं... किती-किती म्हणून असायची ती चित्रं!! वाचन म्हणजे नक्की काय समजण्या आधी फक्त चित्र बघण्यात पण मजाच होती वेगळी, इतकी सुरेख जिवंत चित्र.


तर त्या मासिकातील विक्रम आणि वेताळ कथामालेतील रुबाबदार विक्रम, त्याची टोकदार तलवार, तो मोठा वृक्ष, त्याच्या आजूबाजूला असलेल्या कवट्या, विक्रमाच्या मानगुटिवर/पाठीवर बसलेला पांढरे शुभ्र केस मोकळे सोडलेला खतरनाक वेताळ!! या विक्रम आणि वेताळ यांची अक्षरशः जिवंत चित्रं काढणारे चित्रकार म्हणजे के. सी. शिवशंकरन.


#चांदोबा परिवारातील एकमेव हयात व्यक्ती असलेल्या चित्रकार शंकर यांचे आज निधन झाले आहे. आज त्यांचं वय 96 होतं.


Erode जवळील छोट्या गावात त्यांचा जन्म झालेला. जवळच्या नातेवाईकाचा मृत्यू झाल्याने त्यांचे वडील बायको-मुलांना घेऊन चेन्नईत आले. शाळेत असताना त्यांची चित्रकलेतील प्रगती पाहून त्यांच्या एका शिक्षकाने,"तुझी चित्रकला उत्तम असून तू B.A./M.A. न होता चित्रकलेचं शिक्षण घे" असा सल्ला दिला.


त्यानुसार बारावी पास झाल्यावर त्यांनी Government College of Fine Arts, Chennai येथे प्रवेश घेतला. 1946 मध्ये ते तमिळ नियतकालिक Kalaimagal येथे नोकरीला सुरवात केली. त्यांचा पगार तेव्हा ₹150/- होता. तेवढेच पैसे ते freelance writer म्हणून कमवत होते.


1952 मध्ये बी. नागारेड्डी यांच्या #चंदामामा मासिकासाठी चित्र काढण्याची नोकरी मिळाली. तेव्हा त्यांना ₹ 350/- पगार होता. 


आपलं बालपण सुंदर-सहज करणाऱ्या चित्रकार शंकर यांना भावपूर्ण श्रद्धांजली.

#Chandamama #KCShivshankar #चांदोबा

Monday 28 September 2020

पायल घोषच्या तक्रारीनुसार अनुराग कश्यप यांना अटक करा

 #RAMDAS ATHAWALE#


         

पायल घोषच्या तक्रारीनुसार अनुराग कश्यप यांना येत्या सात दिवसांत अटक करा अन्यथा रिपब्लिकन पक्ष आंदोलन छेडेल  -केंद्रियराज्यमंत्री रामदास आठवले


 मुंबई दि. 28 - अभिनेत्री पायल घोष यांच्यावर दिग्दर्शक अनुराग कश्यप यांनी अत्याचार केल्याची तक्रार दाखल करण्यात आली आहे.  त्या प्रकरणी मुंबई पोलिसांनी अद्याप अनुराग कश्यप यांची चौकशी केली नाही. येत्या सात दिवसांत मुंबई पोलिसांनी अनुराग कश्यप यांच्यावर कोणती कारवाई केली नाहीतर मुंबईत रिपब्लिकन पक्षातर्फे तीव्र आंदोलन छेडण्यात येईल असा ईशारा आज रिपब्लिकन पक्षाचे राष्ट्रीय अध्यक्ष केंद्रीय सामाजिक न्याय राज्यमंत्री ना रामदास आठवले यांनी दिला आहे. आज अंधेरीत कर्मवीर दादासाहेब गायकवाड  केंद्र येथे अभिनेत्री पायल घोष आणि ना रामदास आठवले यांनी संयुक्त पत्रकार परिषद घेतली. यावेळी रिपाइं चे माजी मंत्री राष्ट्रीय सरचिटणीस अविनाश महातेकर;राष्ट्रीय उपाध्यक्ष काकासाहेब खंबाळकर; सुरेश बारशिंग; केंद्राचे अध्यक्ष विजय जाधव; लाखमेन्द्र खुराणा; एम एस नंदा; रमेश गायकवाड;  जिल्हा अध्यक्ष प्रकाश कमलाकर जाधव;ऍड. नितीन सातपुते; किशोर मासुम; रतन अस्वारे; तरणजीत सिंह; घनश्याम चिरणकर आदी अनेक मान्यवर उपस्थित होते. 

 माझ्या जीवाची आणि इज्जतीची पर्वा न करता मी अनुराग कश्यप विरुद्ध तक्रार केली आहे.माझ्या जीवाला धोका आहे. माझ्या या संकटकाळात केंद्रियराज्यमंत्री रामदास आठवले आणि रिपब्लिकन पक्ष माझ्या पाठीशी उभा राहिल्याने मला हिम्मत मिळाली आहे त्याबद्दल त्यांचे धन्यवाद मानत असल्याचे अभिनेत्री पायल घोष यावेळी म्हणाल्या.

 कोणत्याही महिलेने तिच्यावर अत्याचार झाल्याची तक्रार केल्यानंतर  पोलीस तातडीने कारवाई करून आरोपीला अटक करतात.मात्र अभिनेत्री पायल घोष ने तक्रार करून  आता 7 दिवस झाले तरी अनुराग कश्यपला चौकशी साठी ही पोलिसांनी बोलाविले नाही.

 याप्रकरणी काही लोक अनुराग कश्यप चांगला असल्याचे मत व्यक्त करीत असले तरी ते त्यांचे वैक्तिक मत आहे. पायल घोषला मात्र अनुराग कश्यपचा वाईट अनुभव आल्याने तिने त्याच्या विरुद्ध  तक्रार दाखल केली आहे. याप्रकरणी मुंबईचे सह पोलीस आयुक्त ; उपायुक्त आणि वर्सोवा पोलीस ठाण्याचे वरिष्ठ पोलीस निरीक्षक यांच्याशी आपण बोललो असून पायल घोष ला न्याय देण्याबाबत चर्चा केली आहे. पायल घोषने स्वतःच्या जीवाची आणि इज्जतीची पर्वा न करता अनुराग कश्यप विरुद्ध तक्रार दाखल केली आहे. बॉलिवूड मध्ये नवीन आलेल्या कलाकारांना; करियर घडविण्यसाठी धडपडणाऱ्या  नव्या कलाकारांचे कोणत्याही प्रकारचे शोषण होऊ नये म्हणुन पायल घोष च्या पाठीशी रिपब्लिकन पक्ष उभा आहे.

 याप्रकरणी मुंबई पोलिसांनी योग्य कारवाई केली तर नव्या कलाकारांचे कोणीही शोषण करणार नाही त्यामुळे येत्या 7 दिवसांत अनुराग कश्यप ला पोलिसांनी अटक करावी अन्यथा रिपब्लिकन पक्ष तीव्र आंदोलन छेडेल असा ईशारा ना. रामदास आठवले यांनी दिला आहे. 

अभिनेत्री पायल घोषला मुंबई पोलिसांनी संरक्षण दिले पाहिजे अशी मागणी ना रामदास आठवले यांनी केली आहे. 

यावेळी कर्मवीर दादासाहेब गायकवाड केंद्रा बाहेर रमेश पाईकराव; रमेश पाळंदे; आदी अनेक रिपब्लिकन पक्षाचे कार्यकर्ते मोठया प्रमाणात एकत्र येऊन पायल पाठिंबा देत असल्याबाबत घोषणा देत होते. 


               

गीतकार अभिलाष का निधन

#इतनी_शक्ति_हमें_देना_दाता फेम #गीतकार_अभिलाष_का_निधन



कल 27 सितंबर 2020 की रात को गीतकार अभिलाष ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी स्मृति को सादर नमन।  मार्च में उन्होंने पेट के एक ट्यूमर का ऑपरेशन कराया था। तभी से उनकी तबीयत ठीक नहीं चल रही थी।  मध्य रात्रि में ही गोरेगांव पूर्व के शिव धाम में उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनकी बेटी और दामाद बैंगलोर में रहते हैं।


पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह द्वारा कलाश्री अवार्ड से सम्मानित सिने गीतकार अभिलाष का विश्व प्रसिद्ध गीत 'इतनी शक्ति हमें देना दाता' हिंदुस्तान के 600 विद्यालयों में प्रार्थना गीत के रूप में गाया जाता है। विश्व की आठ भाषाओं में इस गीत का अनुवाद हो चुका है और इसे वहाँ भी प्रार्थना गीत के रूप में गाया जाता है। इस गीत के मेल और फीमेल दो संस्करण हैं। एक में सुषमा श्रेष्ठ, पुष्पा पागधरे आदि की आवाज़ें हैं। दूसरे में घनश्याम वासवानी, अशोक खोसला, शेखर सावकार और मुरलीधर की आवाजें हैं। 


संगीतकार कुलदीप सिंह ने इस गीत को एन चंद्रा की फ़िल्म अंकुश (1985) के लिए संगीतबद्ध किया था। इससे पहले फ़िल्म 'साथ साथ' में  कुलदीप सिंह का संगीत सुपरहिट हो चुका था। चंद्रा जी को उस समय चंदू कहा जाता था। वे फ़िल्म जगत में एक स्ट्रगलर थे। एक दिन वे कुलदीप सिंह के पास गए और बोले- पापा जी, मैंने स्ट्रगल कर रहे कलाकारों की एक टीम बनाई है और उन्हें लेकर एक फ़िल्म कर रहा हूं। कुलदीप सिंह ने बिना पारिश्रमिक मांगे फ़िल्म 'अंकुश' का संगीत दिया। गीतकार अभिलाष ने गीत लिखे। फ़िल्म हिट हुई। गीत संगीत भी हिट हुआ। पब्लिसिटी में हर जगह सिर्फ़ एन चंद्रा का नाम था। इस फ़िल्म की सफलता के साथ चंदूजी एन चंद्रा बन गए। उन्होंने पीछे पलट कर दुबारा कुलदीप सिंह और अभिलाष की तरफ़ नहीं देखा। यही फ़िल्म जगत का दस्तूर है।


'इतनी शक्ति हमें देना दाता' गीत के अलावा अभिलाष जी के लिखे साँझ भई घर आजा (लता), आज की रात न जा (लता), वो जो ख़त मुहब्बत में (ऊषा), तुम्हारी याद के सागर में (ऊषा), संसार है इक नदिया (मुकेश), तेरे बिन सूना मेरे मन का मंदिर (येसुदास) आदि सिने गीत भी बेहद लोकप्रिय हुए। अभिलाष जी 40 सालों से फ़िल्म जगत में सक्रिय हैं। गीत के अलावा उन्होंने कई फ़िल्मों में बतौर पटकथा-संवाद लेखक भी योगदान किया है। कई टीवी धारावाहिको़ं की स्क्रिप्ट लिखी है। उनके गीत, संगीत की दुनिया की अमूल्य थाती हैं।

 

संवाद लेखन और गीत लेखन के लिए अभिलाष को सुर आराधना अवार्ड, मातो श्री अवार्ड, सिने गोवर्स अवार्ड, फ़िल्म गोवर्स अवार्ड, अभिनव शब्द शिल्पी अवार्ड, विक्रम उत्सव सम्मान, हिंदी सेवा सम्मान और दादा साहेब फाल्के अकादमी अवार्ड से सम्मानित किया गया है। अदालत, धूप छाँव, दुनिया रंग रंगीली, अनुभव, संसार, चित्रहार, रंगोली और ॐ नमो शिवाय जैसे अनेक लोकप्रिय धारावाहिकों में अभिलाष ने अपनी क़लम की छाप छोड़ी है। 

 

गीतकार अभिलाष स्क्रीन राइटर एसोसिएशन के ज्वाइंट सेक्रेटरी और आईपीआरएस के डाइरेक्टर का पद भी संभाल चुके हैं। साथ ही वे अपने प्रोडक्शन हाउस मंगलाया क्रिएशन के तहत टीवी के लिए कई धारवाहिकों का निर्माण भी कर चुके हैं। हिंदी सिने जगत में रचनात्मक योगदान के लिए गीतकार अभिलाष को गीत गौरव सम्मान से विभूषित किया गया। 



🍁#अभिलाष_उर्फ़_ओमप्रकाश_अज़ीज़🍁

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गीतकार अभिलाष का जन्म 13 मार्च 1946 को दिल्ली में हुआ। दिल्ली में उनके पिता का व्यवसाय था। वे चाहते थे कि अभिलाष व्यवसाय में उनका हाथ बटाएं। लेकिन ऐसा संभव नहीं हुआ। छात्र जीवन में बारह साल की उम्र में अभिलाष ने कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं। मैट्रिक की पढ़ाई के बाद वे मंच पर भी सक्रिय हो गए। उनका वास्तविक नाम ओम प्रकाश है। उन्होंने अपना तख़ल्लुस 'अज़ीज़' रख लिया।ओमप्रकाश' अज़ीज़' के नाम से उनकी ग़ज़लें, नज़्में और कहानियां कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। 


'अज़ीज़' देहलवी नाम से अभिलाष ने मुशायरों में शिरकत की। मन ही मन साहिर लुधियानवी को अपना उस्ताद मान लिया। दिल्ली के एक मुशायरे में साहिर लुधियानवी पधारे। नौजवान शायर 'अज़ीज़' देहलवी ने उनसे मिलकर उनका आशीर्वाद लिया। साहिर साहब को कुछ नज़्में सुनाईं। साहिर ने कहा- मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं तुम्हारे मुंह से अपनी नज़्में सुन रहा हूं। तुम अपना रास्ता अलग करो। ऐसी ग़ज़लें और नज़्में लिखो जिसमें तुम्हारा अपना रंग दिखाई पड़े। साहिर का मशविरा मानकर वे अपने रंग में ढल गए। ओमप्रकाश' अज़ीज़' सिने जगत में बतौर गीतकार दाख़िल हुए तो उन्होंने अपना नाम अभिलाष रख लिया। 


अभिलाष का कहना है कि अब सिने गीतों को भाषा बदल गई। सिने गीत फास्ट फूड बन गए हैं। इन्हें सुनकर दिल को सुकून नहीं मिलता। पहले गीतों में महबूब को 'आप' कहा जाता था। फिर 'तुम' पर आए और अब 'तू' लिखा जा रहा है। गीतों से शायरी ग़ायब हो गई है। ज़िंदगी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अब गीत बेचना पड़ता है। मोबाइल की एक कॉलर ट्यून के लिए उपभोक्ता को 30  रूपए महीना भुगतान करना पड़ता है। ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता’ गीत को दो करोड़ से अधिक लोगों ने अपनी कॉलर ट्यून बनाया है। कॉपी राइट अमेंडमेंट बिल 2012 पास होने के बावजूद इससे ज़बर्दस्त कमाई करने वाली टी सीरीज़ म्यूज़िक कम्पनी ने इसके गीतकार अभिलाष को कोई भुगतान नहीं किया। 


गीतकार अभिलाष मृदुभाषी, मिलनसार और विनम्र इंसान थे। उन्होंने कई बेहतरीन ग़ज़लें और नज़्में लिखी हैं। अगर वह मंच पर जाते तो मंच की गरिमा बढ़ती। सिने गीतकार  बनने के बाद उन्हें मंच पर कविता पाठ का कभी आकर्षण नहीं रहा। दोस्ताना महफ़िलों और आत्मीय समारोहों में वे कविता पाठ भी करते थे।

लता मंगेशकर पुरस्कार उषा मंगेशकर यांना

महाराष्ट्र शासनाचा गानसम्राज्ञी लता मंगेशकर पुरस्कार उषा मंगेशकर  यांना 




 महाराष्ट्र शासनाच्या सांस्कृतिक कार्य विभागातर्फे देण्यात येणारा गानसम्राज्ञी लता मंगेशकर पुरस्कार जेष्ठ गायिका उषा मंगेशकर यांना  जाहीर करण्यात आला आहे.  5 लाख रुपये, मानपत्र, स्मृतिचिन्ह असे या पुरस्काराचे स्वरुप आहे. राज्याचे सांस्कृतिक कार्य मंत्री श्री. अमित  विलासराव देशमुख यांच्या अध्यक्षतेखालील निवड समितीने सन 2020-21 साठीच्या पुरस्कारासाठी ही निवड केली.  

         उषा मंगेशकर यांनी  मराठी, हिंदीसह अनेक भाषांमध्ये शेकडो सुमधुर गाणी गायली आहेत. सुबह का तारा , जय संतोषी मां , आझाद , चित्रलेखा , खट्टा मीठा ,काला पत्थर, नसीब, खुबसूरत, डिस्को डान्सर , इनकार अशा अनेक हिंदी चित्रपटांमध्ये त्यांनी गायलेली गाणी प्रचंड गाजली. मराठीत दादा कोंडके यांच्या चित्रपटांसाठी त्यांनी गायलेली सर्वच गाणी आणि राम कदम यांच्या संगीत दिग्दर्शनाखाली गायलेल्या लावण्या रसिकांनी डोक्यावर घेतल्या. त्यांनी अनेक चित्रपटांसाठी गायलेल्या लावण्यांमधील गावरान ठसका रसिकांना विशेष भावला. त्यांनी गायलेली असंख्य भावगीते, भक्तिगीते  अतिशय लोकप्रिय आहेत. 

             सांस्कृतिक कार्य मंत्री यांनी उषाताईंचे पुरस्काराबददल अभिनंदन केले आहे. हा अत्यंत प्रतिष्ठेचा पुरस्कार शासनाने आपल्याला प्रदान करण्याचे घोषित केल्याबद्दल, उषाताई मंगेशकर यांनी आनंद व्यक्त केला आहे.

              गायन व संगीत या क्षेत्रात प्रदीर्घ कार्य केलेल्या कलाकारास राज्य शासनातर्फे सन 1992 पासून गानसम्राज्ञी लता मंगेशकर पुरस्कार प्रदान करुन गौरविण्यात येते.  संगीतकार  राम - लक्ष्मण, उषा खन्ना, उत्तम सिंग, प्रभाकर जोग, गायिका सुमन कल्याणपूर, आशा भोसले, पुष्पा पागधरे, कृष्णा कल्ले यांसारख्या अनेक मान्यवरांना यापूर्वी या पुरस्काराने गौरविण्यात आले आहे.

Saturday 26 September 2020

इंडस्ट्री को बदनाम किया जा रहा हैं - डायरेक्टर विशाल भारद्वाज

 हमारी इंडस्ट्री को बदनाम किया जा रहा हैं, माफ कर दो हमे- डायरेक्टर विशाल भारद्वाज


फिल्मी दुनिया, एक ऐसी खूबसूरत नगरी , जिसकी चकाचौंध हर किसी को अपना दीवाना बना देती हैं, ये एक ऐसी मायानगरी हैं जिसके अंदर जाकर लोग कभी इससे बाहर नही आना चाहते। अच्छी हो या बुरी , हैं तो ये फ़िल्म इंडस्ट्री अपनी सी। पर आजकल के माहौल ने लोगो के मनोबल को तोड़कर रख दिया हैं कि क्या इस फिल्मी दुनिया मे बाहरी वालो को प्यार नही ? क्या यहां महिलाएं अपने काम को लेकर सुरक्षित नही और क्या यहां नशीली मादक पदार्थो का सेवन आपकी योग्यता को दर्शाता हैं।फिल्म इंडस्ट्री आज इल्ज़ामों के कटघरे में हैं। 


और इसी पर हाल ही में स्क्रीन राइटर एसोसिएशन के प्रेस कॉन्फ्रेंस में अतिथि बनकर आये डायरेक्टर, प्रोड्यूसर, सिंगर,म्यूजिक डायरेक्टर और राइटर विशाल भारद्वाज से जब पूछा गया कि आजकल फ़िल्म इंडस्ट्री में जो टॉक्सिक कल्चर हैं, जो जहरीला मौहाल हैं काम करने के लिए , उसपर क्या बोलना चाहेंगे! तो इसपर विशाल जी ने कहा ' ये लोगो की बनाई हुई बकवास हैं ,आजकल जो खास चल रही हैं।हमारी इंडस्ट्री बहुत ही खूबसूरत हैं जहाँ पर आपस मे बहुत प्यार हैं। जब किसी फ़िल्म की शूटिंग खत्म होती हैं तब पूरी यूनिट को एक दूसरे से बिछड़ने का बहुत  दुख होता हैं। मुझे यहां कभी बाहरी पन का अहसास नही हुआ ।मुझे इस इंडस्ट्री ने बहुत प्यार दिया हैं" ।


 इतना ही नही विशाल जी आगे कहते हैं कि " ये इंडस्ट्री ऐसी हैं जहा आप रातो रात स्टार बन सकते हैं और जोकर बन सकते हैं। अगर आप मे टैलेंट हैं तो आपकी लॉटरी लगने से कोई नही रोक सकता चाहे वो फिल्मी खानदान से हैं या नॉन फिल्मी खानदान से हो। हमारी इंडस्ट्री में बहुत भावनात्मक प्यार हैं। तो कृपा करके हमे माफ कर दीजिए हमे छोड़ दीजिये अपने हाल पर हम बहुत अच्छे हैं। यहाँ पर कोई टॉक्सिक कल्चर नही हैं बल्कि हम सब एक परिवार हैं" ।

 #Director #VishalBhardwaj #विशालभारद्वाज #निर्देशक

STATEMENT BY MR. KARAN JOHAR

 

 

 

Certain news channels, print/ electronic media and social media platform(s) are wrongly and misleadingly reporting that narcotics were consumed at a party that I, Karan Johar hosted on July 28, 2019 at my residence.

 

I had already clarified my position way back in 2019 that the allegations were false.

 

In view of the current malicious campaign, I am reiterating that the allegations are completely baseless and false. No narcotics substance was consumed in the party. I WOULD LIKE TO UNEQUIVOCALLY ONCE AGAIN STATE THAT I DO NOT CONSUME NARCOTICS AND I DO NOT PROMOTE OR ENCOURAGE CONSUMPTION OF ANY SUCH SUBSTANCE.

 

All these slanderous and malicious statements, news articles and news clippings have unnecessarily subjected me, my family, and my colleagues, and Dharma Productions, to hatred, contempt and ridicule.

 

I would like to further state that several media / news channels have been airing news reports that Kshitij Prasad and Anubhav Chopra are my “aides” / “close aides”. I would like to place on record that I do not know these individuals personally and neither of these two individuals are “aides” or “close aides”. NEITHER I, NOR DHARMA PRODUCTIONS CAN BE MADE RESPONSIBLE FOR WHAT PEOPLE DO IN THEIR PERSONAL LIVES. THESE ALLEGATIONS DO NOT PERTAIN TO DHARMA PRODUCTIONS.

 

I wish to further state that Mr. Anubhav Chopra is not an employee at Dharma Productions. He was briefly associated with us for only two months in the capacity of 2nd assistant director for a film, between November 2011 and January 2012 and as assistant director for the short film in January 2013. He has thereafter never been associated with Dharma Productions for any other project.

 

Mr. Kshitij Ravi Prasad joined Dharmatic Entertainment (sister concern of Dharma Productions) in November 2019 as one of the executive producers on contract basis for a project which eventually did not materialise.

 

However, in the past few days, the media has resorted to distasteful, distorted and false allegations. I hope the members of the media would exercise restraint else I will be left with no option but to legally protect my rights against this baseless attack on me.

Friday 25 September 2020

Baiju Mangeshkar’s Digital Baithak

Baiju Mangeshkar’s Familial Tribute With Malhaar Baithak’s  ‘The Mangeshkar Legacy’, A Digital Baithak



September seems to be a rather cherished month for the illustrious Mangeshkar family of India. Bharat Ratna Lata Mangeshkar, who is fondly referred to as the Queen of Melody while Padma Vibhushan Asha Bhosle, arguably the most versatile playback singer in the history of the Indian film and music industry. Interestingly both the sisters were born in the month of September! Asha Bhosle, who just celebrated her birthday in a familial celebration at Lonavala, while the family gears towards celebrating Lata Mangeshkar’s birthday on the 28th in the coming week! What grabs our attention is what Baiju Mangeshkar, their nephew has in store for us! A musical treat celebrating the legacy of the Mangeshkar family.


Baiju Mangeshkar, the new generation torch-bearer of this illustrious musical family, has been invited to make his presence felt by the Malhaar Baithak to share some interesting anecdotes and back stories! The musical troupe comprising of students from the U.A.E., will pay an endearing tribute to this musical legacy and the family’s famous classical compositions in an interactive session with Baiju! “I am delighted to be invited as a guest to witness such an honourable tribute to my aunts, my father and the entire family,” he avers. 


Yours to witness is the digital baithak live on selected social media.

Thursday 24 September 2020

भारताचा 51व्या आंतरराष्ट्रीय चित्रपट महोत्सवास पुढे ढकलण्यात आला

 भारताच्या 51व्या आंतरराष्ट्रीय चित्रपट महोत्सवाचे ( 51वा इफ्फी)यंदा गोवा येथे दि. 20 नोव्हेंबर ते 28 नोव्हेंबर, 2020 या कालावधीमध्ये आयोजन करण्यात आले होते. मात्र हा महोत्सव आता पुढे ढकलण्यात आला आहे. नवीन कार्यक्रमानुसार आता दि. 16 ते 24 जानेवारी, 2021 या काळामध्ये हा चित्रपट महोत्सव भरविण्यात येणार आहे. गोव्याचे मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद सावंत यांच्याशी चर्चा केल्यानंतर माहिती आणि प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर यांनी हा महोत्सव पुढे ढकलण्याचा निर्णय घेतला आहे.


आंतरराष्ट्रीय चित्रपट महोत्सवांच्या मार्गदर्शक सूचना आणि शिष्टाचार लक्षात घेवून दि. 16 ते 24 जानेवारी,2021 या काळात या महोत्सवाचे आयोजन करण्याचा निर्णय संयुक्तपणे घेण्यात आला आहे. कोविड-19 महामारीचा उद्रेक लक्षात घेवून यंदा हा महोत्सव संयुक्त स्वरूपामध्ये म्हणजे प्रत्यक्ष आणि आभासी अशा दोन्ही पद्धतीने साजरा करण्यात येणार आहे. अलिकडच्या काळामध्ये आयोजित आंतरराष्ट्रीय चित्रपट महोत्सवांप्रमाणे कोविड-19 संबंधित सर्व नियम यावेळी काटेकोरपणे लागू करण्यात येणार आहेत.

Tuesday 22 September 2020

आशालता बावगावकर यांना श्रद्धांजली

 *जेष्ठ अभिनेत्री आशालता वाबगावकर यांचे आज करोना मुळे निधन झाले.* 

*आशालता वाबगावकर यांचा अल्पपरिचय.* 



जन्म. २ जुलै १९४१

आशालता नाईक हे आशालता वाबगांवकर यांचे माहेरचे नाव.

 ‘दि गोवा हिंदू असोसिएशन’ या संस्थेने महाराष्ट्र राज्य नाट्यस्पर्धेत सादर केलेल्या ‘सं. संशयकल्लोळ’ या नाटकातील रेवतीच्या भूमिकेतून आशालता वाबगावकर यांनी रंगभूमीवर पदार्पण केले. या नाटकाचे गोपीनाथ सावकार हे दिग्दर्शक होते. रेवतीच्या भूमिकेसाठी मुलींचा शोध चालू झाला. काहींची भाषा योग्य नव्हती, काहींना रेवतीचे सौंदर्य नव्हते, तर काहींना गाण्याचे अंग नव्हते. मुंबई आकाशवाणीवर त्या काळी कोकणी विभागात असणारे विष्णू नाईक यांनी आशालता नाईक या मुलीचे नाव सुचवले. आकाशवाणीवर त्यांनी या मुलीची भाषा ऐकली होती. गाणेही ऐकले होते. 

घरात स्कर्ट घालणारी ही षोडशवर्षा मुलगी साडी नेसून चाचणीला आली आणि एकही प्रश्न न विचारता सावकारांनी तिची निवड केली. सर्व जण अवाक झाले. सावकारांना विचारताच ते म्हणाले, ‘तिचा नाकाचा शेंडा फार बोलका आहे. ही मुलगी रंगभूमीवर नाव काढील.’ त्यांची निवड योग्य ठरली. संस्थेने स्पर्धेत सादर केलेल्या ‘संगीत संशयकल्लोळ’, ‘संगीत शारदा’ व ‘संगीत मृच्छकटीक’ या तिन्ही नाटकांत अनुक्रमे रेवती, शारदा व वसंतसेना या भूमिकांसाठी दर वर्षी आशालता वाबगावकर यांना उत्कृष्ट अभिनयाचे पारितोषिक मिळाले. त्यांनी साकार केलेल्या भूमिका अद्यापि लोकांच्या स्मरणातून गेलेल्या नाहीत. पं. गोविंदराव अग्नींनी त्यांची सर्व गाणी पारंपरिक पद्धतीने बसवली होती. त्यांची वसंतसेनेची भूमिका पाहूनच प्रा. वसंतराव कानेटकरांनी ‘हीच माझी मत्स्यगंधा,’ असे उद्गार काढले होते. म्हणून आशालता वाबगावकर या आपल्या दोन्ही गुरूंचा कृतज्ञतापूर्वक उल्लेख करत असत.

नाट्यस्पर्धांतून बक्षिसे मिळविणारी आशालता वाबगावकर सर्वार्थाने रसिकांच्या मनात कायमची जाऊन बसल्या, त्या त्यांच्या मत्स्यगंधेच्या भूमिकेने. या नाटकात संवादाबरोबरच संगीताची परीक्षा त्यांना प्रेक्षकांसमोर द्यायची होती. जितेंद्र अभिषेकी या नव्या दमाच्या कल्पक संगीत दिग्दर्शकाचेही ते पहिलेच नाटक. त्यामुळे एक वेगळा तणाव आशाच्या मनावर येणे स्वाभाविक होते. अभिषेकींनी आपल्या कौशल्याने त्यांच्या गळ्यात चपखल बसतील, अशा चाली अलगदपणे तिच्या गळ्यात उतरवल्या. आशालता वाबगावकर यांनीही परिश्रमपूर्वक या चालींचे सोने केले. कुठलीही भूमिका साकारताना त्यासाठी अपार कष्ट घेण्याची त्यांची तयारी होती. म्हणूनच ‘भावबंधन’ नाटकात चित्तरंजन कोल्हटकर (घनश्याम) व प्रसाद सावकार (प्रभाकर) यांसारख्या मुरलेल्या अनुभवी कलाकारांबरोबर आपल्याला लतिकेची भूमिका करावी लागणार आहे, हे समजल्यावर त्यांनी, त्या मा. नरेश यांना आपल्या घरी येऊन तालीम देण्याची विनंती केली. मा. नरेश यांनी प्रकृती अस्वस्थ असूनसुद्धा पंधरा दिवस आशाताईंच्या घरी राहून त्यांना या भूमिकेचे बारकावे समजावून दिले होते. दुर्दैवाने अल्पावधीतच त्यांचे निधन झाल्यामुळे मा.नरेश त्यांचा प्रयोग मात्र पाहू शकले नाहीत.

पहिल्यांदाच रंगभूमीवर येणाऱ्या नाटकात एखादी भूमिका साकार करणे हे जितके कठीण असते, त्याहीपेक्षा पूर्वी रंगभूमीवर येऊन गेलेल्या व प्रेक्षकांच्या मनात स्थिर होऊन राहिलेल्या, दुसऱ्या कलाकाराने साकारलेल्या भूमिका करणे हे अति अवघड असते; कारण प्रेक्षकांच्या नजरेसमोर तरळत असलेल्या पूर्वीच्या अभिनेत्रीच्या व्यक्तिमत्त्वाचा आणि कौशल्याचा प्रभाव स्वत:च्या भूमिकेने पुसून टाकणे हे आव्हान असते व ते पेलण्यासाठी धाडस लागते, जबर आत्मविश्वास लागतो. आशाताईंनी हे आव्हान अनेक वेळा यशस्वीरीत्या पेललेले होते. यात ‘रायगडाला जेव्हा जाग येते’ मधील येसूबाई (सुधा करमरकर), ‘गारंबीचा बापू’मधील राधा (उषा किरण), ‘गुंतता हृदय हे’मधील कल्याणी (पद्मा चव्हाण) आणि ‘भाऊबंदकी’नाटकात त्यांनी आनंदीबाईची भूमिका केली होती. ही भूमिका आधी दुर्गाबाई खोटे करीत असत. दाजी भाटवडेकर (राघोबादादा), मा. दत्ताराम (रामशास्त्री) अशा कसलेल्या अनुभवी कलाकारांबरोबर काम करणे सोपी गोष्ट नव्हती. नटश्रेष्ठ केशवराव दाते यांनी आशाताईंना आनंदीबाईच्या स्वभावाचे कंगोरे समजावून सांगितले होते, मार्गदर्शन केले होते. आनंदीबाई ही राजकारण कोळून प्यालेली, आपल्या सौंदर्यावर आपला नवरा पूर्णपणे भाळलेला आहे हे जाणणारी, महत्त्वाकांक्षी स्त्री. ‘या नाटकात डोळ्यांचा आणि शब्दांचा उपयोग करा, शब्द प्रेक्षकांच्या उरी घुसले पाहिजेत,’ असा कानमंत्र दाते यांनी आशाताईंना दिला होता. एका प्रवेशात नारायणरावांची गारद्यांच्या हातून हत्या होताना आनंदीबाई पाहते आणि लगेच बाकी सर्वांच्या समोर त्यांचे प्रेत पाहून रडवेली होते, असा क्षणात मुद्राभिनय बदलण्याचा प्रसंग होता. साताऱ्याला या प्रसंगानंतर त्यांच्यावर प्रेक्षकांतून चप्पल फेकली. त्या क्षणभर नर्व्हस झाल्या. भाषण आठवेना. रामशास्त्रीच्या भूमिकेतील मा. दत्ताराम जवळच उभे होते. ते म्हणाले, ‘मुली, ही तुझ्या अभिनयाला दिलेली दाद आहे. पुढचं वाक्य बोल.’ या व अशा भूमिकांमुळे आशा आणि आव्हान हे रंगभूमीवरचे समीकरणच झालेले असावे.

दि गोवा हिंदू असोसिएशन, चंद्रलेखा, अभिजात, मुंबई मराठी साहित्य संघ, माउली प्रॉडक्शन्स व आय.एन.टी. अशा सहा संस्थांमधून त्यांनी जवळजवळ पन्नासहून अधिक नाटकांचे हजारो प्रयोग केले. चंद्रलेखा या संस्थेत त्यांनी सर्वाधिक नाटके केली. ‘घरात फुलला पारिजात’मध्ये चंद्रलेखा, ‘आश्चर्य नंबर दहा’ मध्ये विमला, ‘विदूषक’ मध्ये अंजली, ‘गरुडझेप’मधील सत्तरी ओलांडलेली राजमाता जिजाबाई आणि ‘वाऱ्यावरची वरात’मधली तारस्वरात कन्नड भाषेचे हेल काढून बोलणारी कडवेकर मामी अशा भिन्नभिन्न स्वभावाच्या भूमिकांमधून आशाताईंनी आपले नाट्यनैपुण्य प्रकर्षाने प्रगट केलेले आहे. ‘वाऱ्यावरची वरात’ या नाटकात खुद्द पु.लं.च्या बरोबर काम करायला मिळणे हा त्या आपल्या आयुष्यातील भाग्ययोग मानत असत.

‘गुड बाय डॉक्टर’ या नाटकाच्या शंभराव्या प्रयोगाच्या वेळी त्यांच्या पायाला दुखापत झाली होती. पायाला बँडेज केले होते. असह्य वेदना होत होत्या. त्यामुळे हालचाली करणे कठीण झाले होते. शंभरावा प्रयोग रद्द करणे योग्य नसल्यामुळे त्या तशाही परिस्थितीत भूमिका करण्यासाठी तयार झाल्या. प्रयोग सुरू होण्याअगोदर त्यांनी ही परिस्थिती प्रेक्षकांना समजावून सांगितली. 

आपली भूमिका नेहमीप्रमाणे होऊ शकत नसल्यामुळे ज्यांना पैसे परत पाहिजेत, त्यांना ते देण्याची संस्थेने तयारी दाखविली; पण एकाही प्रेक्षकाने पैसे परत घेतले नाहीत. 

आशालता वाबगावकर यांनी अनेक हिंदी मराठी चित्रपटात अभीनय केला होता. 

दूरदर्शनवरआशालता वाबगावकर यांनी एका कोकणी नाटकात भाग घेतला होता. त्यातील त्यांचा अभिनय बघून नामांकित चित्रपट दिग्दर्शक बासू चटर्जी यांनी त्यांच्याबद्दल चौकशी केली. त्यांचे ‘गुंतता हृदय हे’हे नाटक पाहिले आणि ‘अपने पराये’ या आपल्या चित्रपटात त्यांना भूमिका दिली. अमोल पालेकर, गिरीश कार्नाड यांच्यासारख्या चित्रपटसृष्टीत मुरलेल्या कलाकारांबरोबर काम करण्याची संधी त्यांना पदार्पणातच मिळाली होती. त्यांनी चित्रपट तंत्राची मुळाक्षरे बासुदांसारख्या दिग्दर्शकाच्या हाताखाली गिरवल्यामुळे नंतर केलेल्या जवळजवळ दोनशेहून अधिक हिंदी व पन्नासहून अधिक मराठी चित्रपटांचा प्रवास सोपा झाला. आशाताई कधी स्तुतीने भाळल्या नाहीत किंवा निंदेने चळल्या नाहीत. रंगभूमीवर किंवा चित्रपटात डोळ्यांत पाणी आणण्यासाठी त्यांना कधी ग्लिसरीनचा वापर करावा लागला नाही, असे त्या अभिमानाने सांगतात. स्टेजवर नुसते रूप असून भागत नाही. आपण बोललेले शब्द प्रेक्षकांच्या मनाला गोड वाटले पाहिजेत. चेहरा बोलला पाहिजे. भूमिकेशी एकरूप व तन्मय झाले म्हणजे प्रेक्षक तुमचा अभिनय स्वीकारतात. प्रेक्षक हुशार असतात. त्यांना अस्सल व नक्कल यांतला फरक लगेच समजतो. याच प्रेक्षकांनी आपला अभिनय गोड मानून घेतला आणि आपल्याला उदंड प्रेम दिले, याबद्दल त्या त्यांचे ऋणही व्यक्त करत असत.

(Copied from Unknown source)